"तीन मासूम, एक लाश, और एक ऐसी मां जिसने अपने ही घर को श्मशान बना डाला"

 "मां, आज पापा जा रहे हैं, स्कूल मत भेजो" — ये अंतिम बार था जब बच्चों ने मां से मोहब्बत मांगी थी। मगर मां के दिल में उस वक्त मोहब्बत नहीं, ‘मनोज’ था।

बीना ने जो किया, उससे केवल एक पति नहीं मरा। तीन बच्चों का बचपन, एक परिवार की उम्मीदें, और रिश्तों की गर्माहट भी उस गोली के साथ मरी। ज़रा सोचिए, उन बच्चों पर क्या बीत रही होगी, जो थाने जाकर अपनी मां के खिलाफ बयान दे रहे हैं। वे कभी बीना को 'मां' कह पाएंगे?

ये वही बीना है जिसने एक वक्त अपने बच्चों को जन्म दिया था, और वही बीना जिसने अब उनके सिर से पिता का साया छीन लिया। अब वे बच्चे किसे पापा कहेंगे, किससे कहेंगे—‘हमें स्कूल मत भेजो’?                                                तीन पंचायतें, मोहल्ले की बदनामी, रिश्तेदारों की चेतावनी — लेकिन बीना और मनोज का ‘इश्क’ नहीं रुका                 

"तीन मासूम, एक लाश, और एक ऐसी मां जिसने अपने ही घर को श्मशान बना डाला"

लेख: वरिष्ठ महिला पत्रकार

"मां, आज पापा जा रहे हैं, स्कूल मत भेजो" — ये अंतिम बार था जब बच्चों ने मां से मोहब्बत मांगी थी। मगर मां के दिल में उस वक्त मोहब्बत नहीं, ‘मनोज’ था।

बीना ने जो किया, उससे केवल एक पति नहीं मरा। तीन बच्चों का बचपन, एक परिवार की उम्मीदें, और रिश्तों की गर्माहट भी उस गोली के साथ मरी। ज़रा सोचिए, उन बच्चों पर क्या बीत रही होगी, जो थाने जाकर अपनी मां के खिलाफ बयान दे रहे हैं। वे कभी बीना को 'मां' कह पाएंगे?

ये वही बीना है जिसने एक वक्त अपने बच्चों को जन्म दिया था, और वही बीना जिसने अब उनके सिर से पिता का साया छीन लिया। अब वे बच्चे किसे पापा कहेंगे, किससे कहेंगे—‘हमें स्कूल मत भेजो’?


                                       

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