क्या मुस्लिम जगत अपने ही अस्तित्व की ओर बढ़ते संकट को नहीं देख पा रहा है? फारुख अब्दुल्ला का बयान महज एक राजनेता की प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी है।
उन्होंने साफ कहा — “जो चुप हैं, वे अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे हैं।”
ईरान की संकल्पशक्ति की मिसाल देते हुए उन्होंने अमेरिकी हमलों को कर्बला की पुनरावृत्ति बताया। यह वक्त है जब मुस्लिम देश तय करें कि वे इतिहास के किस पक्ष में खड़े हैं — संघर्ष में या समर्पण में?
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