दीपक पाठक की मौत कोई अकेली त्रासदी नहीं, यह एक चेतावनी है—विमानन सुरक्षा और बाद की व्यवस्थाओं को लेकर। एयर इंडिया के इस क्रू मेंबर ने जान गंवाई, लेकिन उसके परिजनों को शव मिलने में 8 दिन लग गए।
क्या भारत के नागरिक उड्डयन सेक्टर में इतने वर्षों बाद भी शव की त्वरित पहचान, पीड़ित परिवारों की सहायता और भावनात्मक समर्थन जैसी मूलभूत व्यवस्थाएं नहीं बन पाई हैं?
दीपक की अंतिम यात्रा में उमड़ी भीड़ ने एक बार फिर यह याद दिला दिया कि हादसे सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि संवेदनाओं की अनगिनत परतें होते हैं।
अब सवाल यह है कि क्या सरकार और एयरलाइन इस मौत से सबक लेगी?
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