राजनीतिक मैदान में अब चुनाव प्रचार नहीं, आंकड़ों की जंग शुरू हो चुकी है।
टीएमसी का आरोप है कि बीजेपी ने अपने इंटर्नल सर्वे में जब सीटें कम पाईं तो चुनाव आयोग की मदद से वोटर लिस्ट से अयोग्य नाम हटाने का अभियान चलाया जा रहा है।
चुनाव आयोग भले इसे नियमित प्रक्रिया बता रहा है, लेकिन टीएमसी इसे “छुपा हुआ एनआरसी” कह रही है।
क्या आंकड़ों की हेराफेरी ही अगला चुनावी अस्त्र बन चुका है?
वोटिंग से पहले वोटर का अस्तित्व ही अगर संदिग्ध हो जाए, तो फिर लोकतंत्र किस आधार पर खड़ा रहेगा?
Tags
national