प्रस्तुत करने में यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश : हाईकोर्ट

 सिविल वाद 


  जबलपुर। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विशाल धगट  की एकल पीठ के समक्ष बताया गया कि यचिकाकर्ता गण बेबा निमिया अहिरवार, रवीन्द्र, सुरेंद्र  श्रीमती प्रभा बेबा सूरज निवासी ग्राम गिलोहा तहसील लवकुश नगर जिला छतरपुर और याचिकाकर्ता के पति एवं पिता छनुआ की ललतिया बाई, चुखरिया  एवं   राजाबाई पुत्री भरोसा अहीर जो निःसंतान संतान थी अपने वृद्ध अवस्था को देखते हुए चल अचल संपत्ति को उक्त तीनों बहनों द्वारा 25/8 / 1988 को अपनी राजी खुशी से बिना किसी दबाव  एवं  इच्छा से गवहों के समक्ष  छनुआ की सेवा से प्रसन्न होकर वसीयत नाम लिखा था !उक्त तीनों वसीयतकर्ताओं  की मृत्यु के बाद उक्त भूमि वसीयत के आधार पर 20/12/1995 को  छनुआ के नाम पर तहसीलदार के आदेशानुसार नामांकित की गई और छनुआ की मृत्यु के बाद उक्त भूमि ग्राम सभा द्वारा सन 2004 में उसके   वारसान पत्नी श्रीमती निमियाबाई  रवीन्द्र, सुरेंद्र ,सूरज अहिरवार के नाम दर्ज हो गई। उक्त भूमि पर पति छनुआ के द्वारा 1988 से कृषि काबिज होकर कृषि कार्य करता रहा उसकी मृत्यु के बाद उसके  उक्त   वारसान काबिज कृषि कार्य करते चले आ रहे हैं! परंतु ग्राम वासियों  के बहकावे में आकर वसीयत कर्ताओं  की समाज के लोग अपने वारिस होने का दावा किया और वसीयत को अमान्य करने कहा जिसमें तहसीलदार ने बिना किसी साक्ष्य और प्रमाण के उक्त तहसीलदार द्वारा आदेश निरस्त कर दिया जिसकी अपील याचिकाकर्ताओं द्वारा अनुविभागीय अधिकारी लव कुश नगर को की गई जिसमें अनुविभागीय अधिकारी द्वारा उक्‍त 31/8/2015 का अवैधानिक आदेश दिनांक 13/3/2020 को निरस्त कर दिया, जिसकी अपील अनावेदक गणों द्वारा उपायुक्त सागर को किया जिसमें उपायुक्त सागर द्वारा बिना सोचे समझे कानून से परे आदेश दिनांक 23/10/2021को पारित कर वसीयत को अमान्य कर अवैधानिक आदेश परित किया!

उक्त आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने     उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की। जिसमें न्यायलय को तर्क के दौरान बताया गया कि वसीयत को तीनों बहनों ने अपनी इच्छा से लिखा है जिसमें सभी गवाह हैं और वसीयत  निरस्त   करने का अधिकार सिविल न्यायालय को है ना कि तहसीलदार और उपायुक्त को न्यायालय द्वारा उक्त प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए प्रकरण में यथा स्थिति बनाए रखने के आदेश परित करते हुए सिविल न्यायालय मे दावा  प्रस्तुत करने के आदेश पारित कर प्रकरण  का निवारण किया गया।    याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता शंभू दयाल गुप्ता, कपिल गुप्ता ने पैरवी की।

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