भाषण नहीं बना हथियार, बना अदालत की दलील
सिंगरौली के गोंडबहारा गांव की एक सभा, भाजपा विधायक राजेंद्र मेश्राम की आक्रामक शैली, और एक सामान्य नागरिक की गरिमा की रक्षा के लिए अदालत की चौखट—यह पूरी कहानी लोकतंत्र के उस हिस्से को उजागर करती है जहाँ सत्ता से टकराना आसान नहीं, पर असंभव भी नहीं। देवेंद्र उर्फ दरोगा पाठक, जिनका 'जुर्म' केवल इतना था कि उन्होंने एक अधिग्रहण समिति सदस्य के नाते विधायक की वादाखिलाफी पर सवाल उठाया, उन्हें सार्वजनिक रूप से 'चोर' और '420' कहा गया। पाठक चुप नहीं रहे।
उन्होंने जबलपुर विशेष अदालत में MLA के खिलाफ मानहानि का मुकदमा ठोक दिया, सबूतों के साथ—भाषण की CD और चश्मदीद गवाह।
अदालत ने भी इसे केवल बयान नहीं, अपमान माना और मेश्राम को 4 अगस्त को पेश होने का आदेश दिया।
क्या यह जनता की आवाज़ को कुचलने का प्रयास था या एक घमंडी नेतृत्व की ग़लती? मामला जितना कानूनी है, उतना ही नैतिक भी।
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