"माँ न बन पाना अपराध नहीं, पर समाज को कौन समझाए?"

 


संजना की कहानी भारत की उन लाखों महिलाओं की चीख है, जिन्हें शादी के बाद सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन मान लिया जाता है।

महिला आयोग से लेकर पंचायत तक, हर जगह चुप्पी है। संजना को ना दहेज से राहत मिली, ना माँ न बन पाने की समझदारी। हर ताना, हर अपमान उसकी हड्डियों में उतर गया। एक दिन बस उसने खुद को ही खत्म कर दिया।

कहां है वो नीति निर्माता, जो महिला सशक्तिकरण के बड़े-बड़े भाषण देते हैं?

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