पूर्वांचल की राजनीति के ‘भीष्म पितामह’ नहीं रहे: केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह के पिता आनंद सिंह का निधन


उत्तर प्रदेश की राजनीति, विशेषकर पूर्वांचल की धरती ने रविवार देर रात एक ऐसा क्षण देखा, जब एक युग का पटाक्षेप हो गया। केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह उर्फ राजा भैया के पिता, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, चार बार के सांसद, पूर्व कृषि मंत्री और मनकापुर राजघराने के महाराज आनंद सिंह का निधन हो गया। वे 85 वर्ष के थे।

रविवार की रात अचानक तबीयत बिगड़ने पर उन्हें लखनऊ के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। जैसे ही यह खबर गोंडा जिले सहित राजनीतिक गलियारों में पहुँची, शोक की लहर दौड़ गई। उनके निधन से सिर्फ एक परिवार नहीं, बल्कि पूर्वांचल की पूरी सियासी संस्कृति ने अपने ‘भीष्म पितामह’ को खो दिया।

राजनीति में शिखर पुरुष रहे आनंद सिंह

आनंद सिंह का जन्म 4 जनवरी 1939 को हुआ था। उनका सियासी सफर किसी किंवदंती से कम नहीं रहा। गोंडा लोकसभा क्षेत्र से वे कांग्रेस के टिकट पर चार बार सांसद निर्वाचित हुए। हर चुनाव में उन्हें एक विशाल जनसमर्थन मिला, जिसमें जातीय गणित नहीं, बल्कि उनके व्यक्तिगत करिश्मे और समाजसेवा का प्रभाव झलकता था।

उनकी पहचान कभी केवल एक राजनेता तक सीमित नहीं रही — वे एक विचार, एक शक्ति और एक संस्था थे। 2012 से 2017 के बीच जब अखिलेश यादव की सरकार उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ थी, तब आनंद सिंह ने कृषि मंत्री के रूप में किसानों और ग्रामीण विकास के लिए उल्लेखनीय कार्य किए। इसके बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति से संयास ले लिया, पर जनता के साथ उनका आत्मिक संबंध कभी टूटा नहीं।

‘यूपी टाइगर’ — जो किसी को भी नेता बना देते थे

पूर्वांचल की राजनीति में आनंद सिंह को "यूपी टाइगर" कहा जाता था। स्थानीय राजनीति में ऐसा प्रभाव कि कांग्रेस हाईकमान सिर्फ उन्हें पार्टी का सिंबल थमाता और बाकी फैसला सिंह साहब का होता था।

उनके दरबार से तय होता था कि कौन विधायक बनेगा, कौन सांसद, कौन जिला पंचायत अध्यक्ष और कौन ब्लॉक प्रमुख। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उनके दौर में मनकापुर कोट की मुहर मतलब सीधे सत्ता की सीढ़ी।

एक पुराने कांग्रेस नेता की मानें तो—
"जब राजा साहब बोल देते थे कि ये लड़का ठीक है, तो फिर कोई दूसरा नाम नहीं आता था। वो खुद राजनीति थे।"

मनकापुर राजघराना — विकास और जनसेवा का प्रतीक

गोंडा के मनकापुर राजघराने की भूमिका सिर्फ सत्ता तक सीमित नहीं रही, वह शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी विकास में भी अग्रणी रहा है। आनंद सिंह ने अपने संसदीय कार्यकाल में क्षेत्र के विकास को नई दिशा दी — चाहे वह सड़कें हों, अस्पताल हों या शिक्षा संस्थान।

उनका जीवन राजनीतिक सौम्यता और जनप्रतिनिधित्व की मिसाल बना। उन्होंने सत्ता को कभी ताकत नहीं, बल्कि जिम्मेदारी माना। वे उन विरले नेताओं में से थे जिनकी कथनी और करनी में फर्क नहीं था।

शोक की लहर और अंतिम विदाई की तैयारियां

आनंद सिंह के निधन की खबर मिलते ही गोंडा, बस्ती, बलरामपुर, श्रावस्ती, फैजाबाद सहित आसपास के जिलों में शोक की लहर दौड़ गई। सुबह होते-होते मनकापुर कोट में श्रद्धांजलि देने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, आमजन — हर कोई अपनी आंखों में आंसू और दिल में श्रद्धा लिए अंतिम दर्शन को पहुंच रहा है।

राज्य सरकार और केंद्र से भी श्रद्धांजलि संदेश आए हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा और संसद में उनके योगदान को याद करते हुए विशेष श्रद्धांजलि दी जाएगी।

राजा की विरासत अब बेटे के कंधों पर

आनंद सिंह की राजनीतिक विरासत अब उनके पुत्र कीर्तिवर्धन सिंह, केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री के कंधों पर है। राजनीति में राजा भैया के नाम से मशहूर कीर्तिवर्धन सिंह ने भी अपने पिता की छवि को जीवंत रखा है — विनम्रता, जनसेवा और दूरदर्शिता से।

अब सवाल नहीं, संकल्प है कि राजा साहब की यह विरासत उनकी सोच और सिद्धांतों के अनुरूप आगे बढ़ेगी।

 आनंद सिंह का निधन केवल एक व्यक्ति का जाना नहीं, बल्कि एक युग का अंत है। एक ऐसा युग, जहाँ राजनीति सेवा थी, नेतृत्व सौम्यता से भरा था और जनप्रतिनिधित्व एक पवित्र कर्तव्य। मनकापुर कोट आज भी खड़ा है, पर उसका शेर अब खामोश हो गया है।

श्रद्धांजलि…

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