*आज शहीद अब्दुल हमीद का जन्मदिन है परंतु उनका प्रतीक चिन्ह निगम द्वारा हटा दिया*




जबलपुर _आज एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर पंडित मोती लाल नेहरू वार्ड के पूर्व पार्षद व पूर्व सांसद प्रतिनिधि सैय्यद ताहिर अली ने बताया कि आज शहीद अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई, 1933 को उत्तर प्रदेश क बनारस से सटेे ग़ाज़ीपुर ज़िले में स्थित धरमपुर नाम के छोटे से  गांव में एक गरीब मुस्लिम परिवार में  हुआ था. और उनके पिता का नाम मोहम्मद उस्मान था. उनके यहाँ परिवार की आजीविका को चलाने के लिए कपड़ों की सिलाई का काम होता था. 

वीर हमीद पंजाब के तरन तारन जिले के खेमकरण सेक्टर पंहुचे जहा युद्ध हो रहा था. पकिस्तान के पास उस समय सबसे घातक  हथियार के रूप में था "अमेरिकन पैटन टैंक"  थे जिसे लोहे का शैतान भी कहा जा सकता हैं और इस पैटन टैंकों पर पकिस्तान को बहुत नाज था. और पाक ने उन्ही टैंको के साथ "असल उताड़" गाँव पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. 

उधर पकिस्तान के पास अमेरिकन पैटन टैंकों का ज़खीरा इधर भारतीय सैनिको के उन तोपों से मुकाबला करने के लिए कोई बड़े हथियार ना थे. था तो बस भारत माता की दुश्मनों से रक्षा करते हुए रणभूमि में शहीद हो जाने का हौसला था और हथियार के नाम पर  साधारण "थ्री नॉट थ्री रायफल" और एल.एम्.जी थे. और इन्ही हथियारों के साथ दुशमनो के छक्के छुड़ाने लगे हमारे सभी वीर सैनिक. 


इधर वीर अब्दुल हमीद के पास अमेरिकन पैटन टैंकों के सामने खिलौने सी लगने वाली "गन माउनटेड जीप" थी. पर दुशमनो को यह नहीं पता था उस पर सवार वीर नहीं परमवीर अब्दुल हमीद हैं.जिनका निशाना महाभारत के अर्जुन की तरह हैं. 


जीप पर सवार दुशमनो से मुकाबला करते हुए हमीद पैटन टैंकों के उन कमजोर हिस्सों पर अपनी गन से इतना सटीक निशाना लगाते थे जिससे लोह रूपी दैत्य धवस्त हो जाता. और इसी तरह अपनी गन से एक एक कर टैंको को नष्ट करना शुरू कर दिया. उनका यह पराक्रम देख दुश्मन भी चकित से रह गए. जिन टैंको पर पकिस्तान को बहुत नाज था. वह साधारण सी गन से  धवस्त हो रहे थे. वीर हमीद को देख भारतीय सैनिको में और जोश आ गया पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने में लग गए एक बाद एक कर सात पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया हमीद ने. 

असल उताड़ गाँव पाकिस्तानी टैंको की कब्रगाह में बदलता चला गया. पाकिस्तानी सैनिक अपनी जान बचा कर भागने लगे लेकिन वीर हमीद मौत बन कर उनके पीछे लग लगे थे. और भागते हुए सैनिको का पीछा  जीप  से करते हुए उन्हें मौत की नींद सुला रहे थे तभी अचानक एक गोला हमीद के जीप पर आ गिरा जिससे वह बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए. और 9  सितम्बर को भारत का यह लाल हम सब को छोड़ वीरगति को प्राप्त हो गया. और इसकी अधिकारिक घोषणा 10 सितम्बर को की गई.

इस युद्ध में वीरता पूर्वक अदुभुत पराक्रम का परिचय देने वाले वीर हमीद को पहले महावीर चक्र और फिर सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया ।।

 ताहिर अली ने बताया कि रद्दी चौकी का शहीद अब्दुल हमीद चौक  2008 मै पार्षद आजम अली के द्वारा करवाया गया था परन्तु  निगम द्वारा स्मार्ट सिटी के द्वारा जब अब्दुल हमीद चौराहा बनाया गया तब उस चौराहे का प्रतीक चिन्ह हटा दिया गया कई बार नगर निगम आयुक्त से मिल कर एवं स्मार्ट सिटी की प्रभारी निधि सिंह राजपूत से मिलकर इसकी स्थापना की मांग की गई तब मुझको ये आश्वासन दिया गया था कि अब्दुल हमीद चौक से जामिया चौराहे वाली रोड के डिवाइडर पर इसकी स्थापना की जाएगी परन्तु आज दो साल बीत जाने के बाद ना स्थानीय जनप्रतिनिधि व ठेकेदार के आपसी विवाद के कारण डिवाइडर बना ओर ना  ही शहीद अब्दुल हमीद स्तंभ की स्थापना हो पाई ....? मेरा निवेदन है आयुक्त महोदय एवं महापौर जी इस पर जल्द से जल्द कार्यवाही की जाए और शहीद अब्दुल हमीद स्तंभ की स्थापना की जाय शहीदों का अपमान सहन नहीं किया जाएगा कांग्रेस पार्टी के द्वारा !!

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